Monika garg

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लेखनी कहानी -17-Oct-2022# धारावाहिक लेखन प्रतियोगिता # त्यौहार का साथ# जैन धर्म का पर्यूषण पर्व

पर्यूषण पर्व, जैन समाज का एक महत्वपूर्ण पर्व है। जैन धर्मावलंबी भाद्रपद मास में पर्यूषण पर्व मनाते हैं। श्वेताम्बर संप्रदाय के पर्यूषण 8 दिन चलते हैं। 8 वें दिन जैन धर्म के लोगों का महत्वपूर्ण त्यौहार संवत्सरी महापर्व मनाया जाता है। इस दिन यथा शक्ति उपवास रखा जाता है। पर्यूषण पर्व की समाप्ति पर क्षमायाचना पर्व मनाया जाता है। उसके बाद दिगंबर संप्रदाय वाले 10 दिन तक पर्यूषण मनाते हैं जिसे वो 'दशलक्षण धर्म' के नाम से संबोधित करते हैं।

जैन धर्म के दस लक्षण इस प्रकार है:-

1) उत्तम क्षमा, 2) उत्तम मार्दव, 3) उत्तम आर्जव, 4) उत्तम शौच, 5) उत्तम सत्य, 6) उत्तम संयम, 7) उत्तम तप, 8) उत्तम त्याग, 9) उत्तम अकिंचन्य, 10) उत्तम ब्रहमचर्य।

कहते हैं जो इन दस लक्षणों का अच्छी तरह से पालन कर ले उसे इस संसार से मुक्ति मिल सकती है। पर सांसारिक जीवन का निर्वाह करने में हर समय इन नियमों का पालन करना मुश्किल हो जाता है और बहुत शुभ और अशुभ कर्मों का बन्ध हो जाता है। इन कर्मो का प्रक्षालन करने के लिए श्रावक उत्तम क्षमा आदि धर्मों का पालन करते है।

इन दस लक्षणों का पालन करने हेतु जैन धर्म में साल में तीन बार दशलक्षण पर्व मनाया जाता है।

चैत्र शुक्ल ५ से १४ तक
भाद्र शुक्ल ५ से १४ तक और
माघ शुक्ल ५ से १४ तक।
भाद्रपद महीने में आने वाले दशलक्षण पर्व को लोगों द्वारा ज्यादा धूमधाम से मनाया जाता है।
इन दस दिनों में श्रावक अपनी शक्ति अनुसार व्रत-उपवास आदि करते है। ज्यादा से ज्यादा समय भगवन की पूजा-अर्चना में व्यतीत किया जाता है।

उतम संयम
पसंद, नापसंद ग़ुस्से का त्याग करना। इन सब से छुटकारा तब ही मुमकिन है जब हम अपनी आत्मा को इन सब प्रलोभनों से मुक्त करें और स्थिर मन के साथ संयम रखें ॥ इसी राह पर चलते परम आनंद मोक्ष की प्राप्ति मुमकिन है ॥

उत्तम तप
(क) तप का अर्थ केवल उपवास तक ही सीमित नहीं है बल्कि तप का असली अर्थ है कि इन सब क्रियाओं के साथ अपनी इच्छाओं और आकांक्षाओं को वश में रखना, ऐसा तप अच्छे गुणवान कर्मों में वृद्धि करते है ॥
(ख) साधना इच्छाओं में वृद्धि ना करने का एकमात्र मार्ग है ॥ पहले तीर्थंकर भगवान आदिनाथ ने लगभग छह महीनों तक ऐसी तप साधना (बिना खाए बिना पिए) की थी और परम आनंद मोक्ष को प्राप्त किया था ॥
हमारे तीर्थंकरों जैसी तप साधना करना इस काल में प्राय नहीं है पर हम भी ऐसी ही भावना रखते है और पर्यूषण पर्व के 10 दिनों के दौरान उपवास (बिना खाए बिना पिए), ऐकाशन (एकबार खाना-पानी) करतें है और परम आनंद मोक्ष को प्राप्त करने की राह पर चलने का प्रयत्न करते हैं ॥

उत्तम त्याग

(क) 'त्याग' शब्द से ही पता चल जाता है कि इसका मतलब छोड़ना है और जीवन को संतुष्ट बना कर अपनी इच्छाओं को वश में करना है, यह न सिर्फ अच्छे गुणवान कर्मों में वृद्धि करता है बल्कि बुरे कर्मों का नाश भी करता है ॥
त्यागने की भावना जैन धर्म में सबसे अधिक है क्योंकि जैन संत केवल घरबार ही नहीं यहां तक कि अपने कपड़े भी त्याग देता है और पूरा जीवन दिगंबर मुद्रा धारण करके व्यतीत करता है ॥ इंसान की शक्ति इससे नहीं परखी जाती कि उसके पास कितनी धन दौलत है बल्कि इससे परखी जाती है कि उसने कितना छोड़ा, कितना त्याग किया है !

(ख) उत्तम त्याग धर्म हमें यही सिखाता है कि मन को संतोषी बनाके ही इच्छाओं और भावनाओं का त्याग करना मुमकिन है ॥ त्याग की भावना भीतरी आत्मा को शुद्ध बनाकर ही प्राप्त होती है ॥
उत्तम आकिंचन
(क) आँकिंचन हमें मोह को त्याग करना सिखाता है ॥ दस शक्यता है जिसके हम बाहरी रूप में मालिक हो सकते है; जमीन, घर, चाँदी, सोना, धन, अन्न, महिला नौकर, पुरुष नौकर, कपडे और संसाधन इन सब का मोह न रखकर ना सिफॅ इच्छाओं पर काबू रख सकते हैं बल्कि इससे गुणवान कर्मों मे वृद्धि भी होती है ॥
(ख) आत्मा के भीतरी मोह जैसे गलत मान्यता, गुस्सा, घमंड, कपट, लालच, मजाक, पसंद नापसंद, डर, शोक, और वासना इन सब मोह का त्याग करके ही आत्मा को शुद्ध बनाया जा सकता है ॥
सब मोह पप्रलोभनों और परिग्रहो को छोडकर ही परम आनंद मोक्ष को प्राप्त करना मुमकिन है ॥

उत्तम ब्रह्मचर्य

(क) ब्रह्मचर्य हमें सिखाता है कि उन परिग्रहो का त्याग करना जो हमारे भौतिक संपर्क से जुडी हुई है
जैसे जमीन पर सोना न कि गद्दे तकियों पर, जरुरत से ज्यादा किसी वस्तु का उपयोग न करना, व्यय, मोह, वासना ना रखते सादगी से जीवन व्यतित करना ॥ कोई भी संत ईसका पालन करते है और विशेषकर जैनसंत शरीर, जुबान और दिमाग से सबसे ज्यादा इसका ही पालन करते हैं ॥

(ख) 'ब्रह्म' जिसका मतलब आत्मा, और 'चर्या' का मतलब रखना, ईसको मिलाकर ब्रह्मचर्य शब्द बना है, ब्रह्मचर्य का मतलब अपनी आत्मा मे रहना है ॥
ब्रह्मचर्य का पालन करने से आपको पूरे ब्रह्मांड का ज्ञान और शक्ति प्राप्त होगी और ऐसा न करने पर आप सिर्फ अपनी इच्छाओं और कामनाओ के गुलाम हि हैं ॥

इस दिन शाम को प्रतिक्रमण करते हुए पूरे साल मे किये गए पाप और कटू वचन से किसी के दिल को जानते और अनजाने ठेस पहुंची हो तो क्षमा याचना करते है ॥ एक दूसरे को क्षमा करते है और एक दूसरे से क्षमा माँगते है और हाथ जोड कर गले मिलकर मिच्छामी दूक्कडम करते है॥

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5 Comments

Pratikhya Priyadarshini

22-Nov-2022 12:27 AM

Very good 🌺🌸

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Teena yadav

21-Nov-2022 08:45 PM

Superb 👍👍👍

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Rafael Swann

17-Nov-2022 01:03 PM

Bahut khoob 😊🌸

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